Saturday, July 24, 2010

आज एक कवित यद् आ रही है जो मुझे बचपन की गलियों में ले जाकर खड़ा कर देती है ये कविता मेने ८ वी कशा में पड़ी थी

वर्षो तक वन में घूम- घूम बांधा विघ्नों को चूम-चूम सह धुपधाम पानी पत्थर पाडंव आए कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन होता है देखे आगे क्या होता है मैत्री की राह बताने को सबकों सुमार्ग पर लाने को भिष्ण विध्वंस बचाने को भगवान हस्तिनापुर आए पांडव का संदेशा लाएं दो न्याय अगर दो आधा दो इसमें भी कोई बांधा हो तो दे दो केवल पांच ग्राम रखो अपनी धरती तमाम हम इसमें खुश हो जाएगें परिजनों पर हंसी न उड़ाएगें। दुर्योधन वह भी दे न सका आशिष समाज की ले न सका उलटे हरी को बांधने चला जो था असाध्य वो साधन चला। जब नाश मनुष्य पर छाता है पहले विवेक मर जाता है हरी ने बिषण हुकार किया अपना स्वरूप विस्तार किया डगमग डगमग दिग्गज डोले भगवान कोपित होकर बोले जंजीर उठा अब सांध मुझे हां हां दुर्योधन बांध मुझे हीत वचन नहीं तुने मांगा मैत्री का मुल्य न पहचाना तो ले अब मै भी जाता हुं अतिम संकल्प सुनाता हुं याचना नहीं अब रण होगा जीवन जय का ही मरण होगा कांपेगे नक्षत्र निगम बरसेंगी भू पर भ्रहणी प्रकट फण शेष नाग का डोलेगा विकराल काल मुख खुलेगा दुर्योधन रण ऐसा होगा फिर कभी नहीं जैसा होागा भाई पर भाई टुटेगे वीष बाण बुंद से छुटेगे आखीर तु भुषाली होगा हिस्ंसाा पर दायी होगा। थी सभा संत सब लोंग डरे चुप थे या बेहोश पडे केवल दो नर अगाते थे धृतराष्टÑ विदुर सुख पाते थे। दोनों पुकारते थे जय- जय।

एक आशा की किरन

एक बंद अधेरे कमरे में से आती रौशनी की एक किरण को न जाने कितनी आखो ने देखा होगा । मेने भी देखा है उस पतली और नन्ही सी रौशनी कोजो मुझे एक आत्म विश्वास से भर देती है यही आत्मविश्वास की भले ही आपके चारो और कितना ही घेहरा अँधेरा क्यों न हो पर आत्मविश्वास की एक किरण इस अंधकार को ख़तम करने क लिए पर्याप्त होती है। वो मिलो का सफ़र तय कर अँधेरे को चीरने के लिए बंद कमरे में आती रौशनी को क्या मिलता होगा शायद ये बात किसी ने सोचने की कोशिश नहीं की होगी। पर मेने की है एक कमजोर कोशिश क्युकी उस किरन की कोशिश क आगे मुझे अपनी कोशिश कमजोर सी लगती है हां तो में अपनी कोशिश क बारे में बात कर रही थी मुझे लगता लगता है की वो किरन को शयद वो स्न्तोष्टि मिलती होगी अँधेरे से डरते बच्चे का डर कम करते समय या फिर एक अँधेरे में भटकते राहगीर को दिखाते समय। ये वो आतम संतोष्टि है जो शायद तेज भूख लगने पर भोजन मिलने के बाद भी नहीं मिल पाती है। में चाहती हु वो रौशनी बनना जो अपने जीवन में फ़ले अँधेरे को दूर कर सके। ये आशा की किरन मुझे हमेशा प्रकाशित करती है।